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तीन शताब्दी पुराना है प्यारेरामजी मंदिर का इतिहास

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रियासतकालीन मंदिर प्यारेरामजी पर आएंगे संघ प्रमुख मोहन भागवत

बारां 03 अक्टूबर। लगभग 350 वर्ष पूर्व समीपवर्ती मध्यप्रदेष के वैराग्य धारण कर बारां पहुंचे महंत प्यारेराम जी ने मंदिर प्यारेरामजी के नाम से अनन्त भगवान की प्रतिमा स्थापित कर तीन परकोठे वाले विषाल मंदिर का निर्माण करवाया। तब से वर्ष 1978 तक इस मंदिर पर महन्तों के द्वारा व्यवस्था की जाती रही। साधु संतों के लगातार ढेरे जिन्हें जमात कहा जाता था अक्सर यहां आया-जाया करती थी। हाथी, घोडों के लवाजमें के साथ इस मंदिर के पहले परकोटे के अंदर लगातार संत महात्मा और महन्त आते-जाते रहे हैं। जहां पर एक विषाल बावडी, तीन पानी की कुईयां 12 माह भरी रहती थी। विषाल वृक्षों और महन्तों की समाधियां यहां स्थापित है। वर्ष 1726 में खीचीं राजवंष के धीरजसिंह वैराग्य लेकर पहले छबडा के गूगोर से बारां आए और यहां पर अपने मठ की स्थापना की। 250 बीघा से अधिक भूमि आज भी इस मंदिर की विद्यमान है। वहीं हाडौती के ख्यातनाम डोल मेले का अधिकांष भूभाग भी इसी मंदिर की सम्पत्ति है। इस मंदिर के अंतिम महन्त के रूप में महन्त प्यारेराम जी द्वितीय ने साधु संतों की सेवा की, उनके निधन के बाद गद्दी विवाद को लेकर राज्य सरकार ने इस मंदिर को अपने कब्जे में लेकर देवस्थान विभाग के अधीन कर दिया।

आज इस मंदिर की बेषकीमती भूमि पर अतिक्रमियों द्वारा कब्जे किए हुए है। मंदिर के समीप ही प्राचीन दुर्गा भूतेष्वर मंदिर भी इसी मंदिर की निजी सम्पत्ति है। मंदिर के आस-पास निर्मित कई धार्मिक स्थल भी इस मंदिर के भूभाग पर बने हुए है। कहां तो यह भी जाता है कि इस सम्पूर्ण डोल मेला तालाब परिसर भी मंदिर प्यारेराम जी की निजी सम्पत्ति हुआ करता था लेकिन राजस्व रेकार्ड में इसका कोई उल्लेख नही होने के कारण आज यह तालाब परिसर सरकारी सम्पत्ति है। देवस्थान विभाग के पास करोडो रूपए का बजट होने के बावजूद इस मंदिर के विकास की ओर विभाग का कोई ध्यान नही है। वर्ष 1992 में राज्य के तत्कालीन ऊर्जा मंत्री रघुवीर सिंह कौषल ने इसकी मरम्मत के लिए कुछ राषि मंजूर की थी। दो दषक पूर्व तक इसका मुख्य द्वार उत्तर दिषा की ओर खुलता था लेकिन वहां वातावरण प्रदूषित होने के कारण भक्तों द्वारा एक नए द्वार का निर्माण करवाकर मुख्य मांगरोल रोड से इसका द्वार बनवा दिया गया तब से इसी द्वार से आया-जाया जाता है। आज भी शहर में ऐसा कोई उत्सव नही होता जहां मंदिर प्यारेरामजी की तोप के बिना आमजन को उत्सव की जानकारी मिलती हो। चाहे ग्रहण हो या फिर अनन्त चतुदर्षी, जन्माष्टमी, जगन्नाथ रथयात्रा इन पर्वो पर आज भी यहां तोप चलाने की परम्परा कायम है। वही अभी भी महन्त प्यारेराम जी की गुदडी की पूजा की जाती है।

चूंकि कोटा राजवंष और राघवगढ राजवंष खींची राजवंष होने के कारण बाद में इस मंदिर की सार-संभाल कोटा रियासत द्वारा की गई लेकिन अब मंदिर के हालात काफी जर्जर है। सौभाग्य की बात है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक माननीय मोहन भागवत अपने चार दिवसीय बारां प्रवास के दौरान शुक्रवार को मंदिर प्यारेरामजी पर पधारेंगे। जहां स्वयं सेवकों से चर्चा कर संभावना है कि मंदिर के हालात की जानकारी भी लेंगे। दुनिया के सबसे बडे संगठन के सबसे प्रमुख व्यक्ति के आगमन के बाद इस मंदिर के दिन कितने संवर पाते हैं यह भविष्य पर निर्भर करता है लेकिन मंदिर को आज भी युद्वस्तर पर नवनिर्माण एवं पुनरूद्वार की आवष्यकता है।

Third Eye News 24
Author: Third Eye News 24

सत्यमेव जयते

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